पर अवगुण देखे सदा, दिखी न खुद में खोट।
अक्सर करते हैं यहाँ, अपने दिल पर चोट।।
जिसको निज नेता चुना, देकर अपना वोट।
सरेआम वह दे रहा, मुझे चोट पर चोट।।
दूषित हुए समाज पर, ले भावों की ओट।
कविगण देते हैं सदा, निज चिंतन की चोट।।
शब्दों के आघात से, उजड़े उर का गाँव।
शब्दों की रसवंतिका, सदा छुआती पाँव।।
कभी न अनुपम कीजिए, दीन हृदय आघात।
दीनों की उर आह से, पुण्य क्षार हुइ जात।।
*** अनुपम आलोक ***
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