दिलों ने दिलों को जो दावत लिखी है।
न समझो कि झूठी इबारत लिखी है।
हमारे बुजुर्गों ने बड़े ही अदब से,
बिना ऐब रहना, नसीहत लिखी है।
अलग घर बसाया मेरे भाईयों ने,
पिताजी ने जबसे वसीयत लिखी है।
सभी को अता की, रंगोआब, सुहरत,
मेरे हिस्से में क्यों फ़जीहत लिखी है।
कुरेदे गये उस ख़लिस के लहू से,
कहानी तुम्हारी बदौलत लिखी है।
झड़े पात जबसे नहीं छाँव देता,
"शजर" की यही तो हक़ीक़त लिखी है।
*** शजर शिवपुरी ***
बिना ऐब रहना, नसीहत लिखी है।
अलग घर बसाया मेरे भाईयों ने,
पिताजी ने जबसे वसीयत लिखी है।
सभी को अता की, रंगोआब, सुहरत,
मेरे हिस्से में क्यों फ़जीहत लिखी है।
कुरेदे गये उस ख़लिस के लहू से,
कहानी तुम्हारी बदौलत लिखी है।
झड़े पात जबसे नहीं छाँव देता,
"शजर" की यही तो हक़ीक़त लिखी है।
*** शजर शिवपुरी ***
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