सार छंद -
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1-
इच्छा होने से क्या होना, इच्छाशक्ति जरूरी।
उद्यम के बिन कभी न होती, कोई इच्छा पूरी।।
प्राप्त हुआ उसको ही जिसने, गहरे पानी खोजा।
भाग्य भरोसे क्या मिलना है, व्रत रख लो या रोजा।।
2-
कर्म विमुख जो चादर ताने,निशदिन ही सोता है।
मानव जीवन वही व्यर्थ में, अपना ही खोता है।।
वही खोजकर मोती लाया, जिसने गोता मारा।
कठिन परिश्रम नेक इरादा, प्रभु को भी है प्यारा।।
3-
कर्म प्रधान सभी ने माना, कहती भगवद्गीता।
युद्ध किया था रघुनंदन ने, तब ला पाए सीता।।
अनुसंधान किया जिसने भी, वही नया कर पाया।
सोते सिंहों के मुख में क्या, स्वयं कभी मृग आया।।
4-
दैव-दैव आलसी पुकारे, बैठे भाग्य भरोसे।
असफलता मिलने पर रोए, और भाग्य को कोसे।।
जिसने रखा हौसला मन में, सदा कर्म को पूजा।
उसके जैसा अखिल विश्व में, कोई और न दूजा।।
***हरिओम श्रीवास्तव***
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