Sunday, 4 February 2018

चार दोहे - आज-कल


आभासी हैं आज कल, रोज नये अनुबंध।
भटकाये फिर मन मृगा, ये कस्तूरी गंध।।


आपा धापी शीर्ष पर, शील धैर्य अवसान।
करुण पुकारें आज कल, कौन सुने भगवान।।


एक अचम्भा आज कल, रोज नये अवतार।
तृष्णा में डूबे हुए, बनते तारण हार।।


गुरुकुल मुँह बाये खड़े, गुरुगण्डे बेकार।
खीसे में है आज कल, अतुल ज्ञान भंडार।।


आर. सी. शर्मा "गोपाल"

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