Tuesday, 13 February 2018

आया मनभावन बसंत

 


नव पल्लव के मृदु झूले पर,
देखो बैठी इतराकर,
प्रकृति सुंदरी झूम रही है,
आहट साजन का पाकर,
पुष्पों का परिधान सुशोभित, सौरभ फैला दिग्दिगंत,
इंद्रधनुष बोता धरती पर, आया मनभावन बसंत


कोयल मंगल गान सुनाती,
मधुरिम स्वर-लहरी फूटे,
मधु पराग चहुँदिश सुमनों पर,
नत हो मधुकर-दल लूटे,
दौड़ पड़े मादक सिहरन सी, छू लेता जब विहँस कंत,
पोर पोर उन्मादित करता, छाया मनभावन बसंत


आँचल में मोहक धरती के,
कितने रंग उभर आए,
नदिया बहती भर उमंग से,
पवन श्वास को महकाए,
मुस्काती है प्रकृति सुंदरी, बिखराती है सुख अनंत,
स्वर्ग धरा पर ज्यों उतार कर, लाया मनभावन बसंत


***** प्रताप नारायण

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