Sunday 4 June 2017

सज़ा/दण्ड पर पाँच दोहे


शांति व्यवस्था के लिए, बनते दण्ड विधान।
कर्म दंड के हेतु हैं, ऊपर कृपानिधान।।1।।


लिखे नहीं कानून में, कुछ ऐसे भी दण्ड।
ईश्वर जो देता सजा, होती बहुत प्रचण्ड।।2।।


आया है कानून का, अब कुछ ऐसा दौर।
सज़ा किसी को मिल रही, अपराधी है और।।3।।


कभी लगे जीवन सज़ा, कभी लगे आनंद।
मिले हलाहल भी यहाँ, और यहीं मकरंद।।4।।


सज़ा सख्त सबसे यही, मन से दिया उतार।
जीते जी इंसान को, देती है जो मार।।5।।


***हरिओम श्रीवास्तव

No comments:

Post a Comment

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...