उम्र मुझसे
पूछती अब
हैं कहाँ वे दिन पुराने
जिन दिनों
हमने रचे थे
धूल से सोनल घरौंदे
फिर बनाया
बाग हमने
और रोपे नवल पौधे
वे विगत पल
पूछते अब
हैं कहाँ वे दिन सलोने
जिन दिनों
हमने नहाये
तीर्थ नैमिष गोमती जल
जिन दिनों
हमको सुलभ था
नेहपूरित मातृ आँचल
घाट नदियाँ
पूछते अब
क्यों नयन के आर्द्र कोने
खो गये
मधु मंजरी के
वे सुवासित बाग न्यारे
और खोये
सावनी दिन
मेहधारी जलद कारे
सोचती अब
उम्र बैठी
फिर लगी आँखें भिगोने
***बृजनाथ श्रीवास्तव
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