Sunday, 21 May 2017

अत्त दीपो भव


अंतिम साँसे गिन रहे, थे जब गौतम बुद्ध।
भद्रक रो कहने लगा, गला हुआ अवरुद्ध।।
राह दिखाए कौन अब, सूर्य चला अवसान।
दीप ज्ञान का बुझ रहा, कौन करै मों शुद्ध।।


भद्रक से प्रभु ने कहे, अंतिम ये उपदेश।
अपना दीपक आप बन, दीप्त होय परिवेश।।
मन वाणी अरु कर्म से, साधक साधे साध्य।
मन-दर मंदिर होय तब, जहाँ बसे अवधेश।।


जीव भटकता रात दिन, तीर्थ कंदरा खोह।
करे कामना बिन तजे, काम क्रोध मद मोह।।
बाहर-बाहर ढूँढता, अंतर लिए प्रकाश।
साधक साधन साध्य सब, ईश अंश ही सोह।।


***** गोप कुमार मिश्र

No comments:

Post a Comment

नव द्वार खोल आए - गीत

  नव वर्ष आगमन पर नव द्वार खोल आए। नव भोर की प्रभा में नव राग घोल आए। निज सोच शुद्ध हो ले कुछ ज्ञान बुद्ध कर लें। बाटें क्षमा ...