Sunday, 5 February 2017

रोना/रुदन पर दो कुण्डलिया




1.

रोना सब रोते यही, बुरा समय है आज।
भ्रष्टों का ही राज है, कैसा हुआ समाज।।
कैसा हुआ समाज, बात हर कोई करता।
जिसका लगता दाव, वही अपना घर भरता।।
करने भर से बात, नहीं कुछ भी है होना।
बातों के जो वीर, उन्हें बस आता रोना।।


2.


रोना रोने से कभी, मिलता नहीं निदान।
कर्म कला करती रही, हर मुश्किल आसान।।
हर मुश्किल आसान, ज़माने का रुख़ मोड़ो।
करो सदा संघर्ष, कभी मैदान न छोड़ो।।
लिखो कर्म से भाग्य, रुदन से क्या है होना।
अकर्मण्य जो लोग, पड़ेगा उनको रोना।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

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