Sunday, 29 January 2017

गणतन्त्र दिवस पर दोहे



अंग्रेज़ों की लीक पर, बहुत चले मजबूर।
रीति नीति की ज्योति अब, संवैधानिक नूर।।


संविधान सर्वोच्च है, समरसता सम्मान।
लोकतंत्र में लोकहित, प्रहरी इसको जान।।


पढ़ें हमीं ने आदि से, सकल सृष्टि सोपान।
मंगल ग्रह भी कह रहा, भारत देश महान।।


कुर्बां अपने देश पर, क़तरा-क़तरा खून।
ज़र्रे-ज़र्रे में यहाँ, जज़्बा जोश जूनून।।


निर्भय हो कर नाचता, गुलशन में हर ओर।
भ्रष्ट्र व्यवस्था पाँव त्यों, लोकतंत्र ज्यों मोर।।


कह देगी मजबूर हो, दुनिया देर सबेर।
भारत अब चिड़िया नहीं, है सोने का शेर।।


**********************************
आर. सी. शर्मा "गोपाल"

No comments:

Post a Comment

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...