Sunday, 8 January 2017

कह-मुकरियाँ


1

 
रात दिवस वह मुझे सताता,
फिर भी मुझे लगे सुखदाता।
बिस्तर में बीता पखवाड़ा,
ऐ सखि साजन? नहिं सखि! ‘जाड़ा’।।


2

 
ओढ़ रजाई जब छिप जाती,
तब उससे कुछ राहत पाती।
मौका मिलते करे कबाड़ा,
ऐ सखि साजन? नहिं सखि! ‘जाड़ा’।।


3

 
उसके बिन कटतीं नहिं रतिंयाँ,
लगा रखूँ मैं उसको छतिंयाँ।
सर्दी की वह लगे दवाई,
ऐ सखि साजन? नहीं ‘रजाई’।।


4
 
दिन में कुछ राहत मिल पाये,
रातों को वह बहुत सताये।
तनिक न रहम करे ‘बेदर्दी’,
ऐ सखि साजन? नहिं सखि! ‘सर्दी’।।


***** हरिओम श्रीवास्तव

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