चुप सजदे में रहता है,
मेरा दिल क्या कहता है ?
काँटों से ख़ुश हो खेला,
गहरे घावों को झेला।
नादानी बस है ओढ़ी,
दिखता सबको अलबेला।
सब रंज़ो-ग़म सहता है,
मेरा दिल क्या कहता है?
जब भी है जिसपे आया,
उस आशिक ने भरमाया।
जब चाहा दिल से खेला,
जी ऊबा तो ठुकराया।
कुछ भीतर भी ढहता है,
मेरा दिल क्या कहता है?
पूछे, किसकी सुनते हो?
जब भी सपने बुनते हो।
टूटा मैं ही करता हूँ,
ऐसे पत्थर चुनते हो।
रिस रिस लावा बहता है,
मेरा दिल क्या कहता है ?
***** मदन प्रकाश
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदिल से आभार आपका आदरणीया.
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