Sunday 21 February 2016

मौसम


 
गहरी आँखों से काजल चुराने की बात न करो।
दिलकश चेहरे से घूँघट उठाने की बात न करो।।


सावन है बहुत दूर ऐ मेरे हमदम मेरे हमसफ़र।
बिन मौसम ही यूँ तुम सताने की बात न करो।।


इंतज़ार ही किया तुम्हारा हर मुलाक़ात के लिए।
ऐसे में फिर तुम अपना जताने की बात न करो।।


प्यार के परिंदे बन उड़ना ही अच्छा इस जहाँ में।
ज़ालिम है ज़माना घर बसाने की बात न करो।।


जहाँ चलती हो प्रेम के विपरीत खूब आँधियाँ ।
वहाँ फिर प्यार की शमाँ जलाने की बात न करो।।


***** "दिनेश"

10 comments:

  1. आदरणीय विश्वजीत जी सपन जी मेरी रचना को सम्मान देने और ब्लॉग पर जगह देने के लिए दिल से आभार आपका

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    1. सादर स्वागत है आद. Dinesh Dave जी. सादर नमन

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    2. आभार आपका आदरणीय सपन जी साहिब

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  2. आदरणीया रेखा जोशी जी दिल से आभार आपका, मेरी रचना के भावो , शिल्प को सम्मान दिया , और सर्वश्रेष्ठ रचना घोषित कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए

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    1. आद. रेखा जोशी का दिल से आभार है आदरणीय. उनका चयन बहुत सुन्दर है. सादर नमन

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  3. सभी सम्मानित सदस्यों , मित्रो का दिल से आभार, समय समय पर उत्साह बढ़ाते है ,स्नेह मिलता है आप सभी का जो सृजन यात्रा को सहज बनाता है

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    1. आपका उत्साहवर्धन हो इसी कारण से यह कार्यक्रम रखा गया है, ताकि अनगिनत पाठक मिल सके. इसी प्रकार लिखते रहें और ईश्वर आपको सफलता प्रदान करता रहे.
      सादर नमन

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  5. आदरणीय विश्वजीत जी सपन जी मेरी रचना को सम्मान देने और ब्लॉग पर जगह देने के लिए दिल से आभार आपका

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    1. आदरणीय दिनेश दवे जी, आपका हार्दिक स्वागत है. आपका उत्साहवर्धन हुआ तो मंच की मंशा की पूर्ति हुई. इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें. सादर नमन

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