मन बेचारा, यह आवारा, कहाँ हुई कुछ भूल
सपने बाँट रहे सन्नाटे, नींद हुई प्रतिकूल
रात उनींदी, दिन अलसाए,
औंघाये पल-छिन,
घूँघट के भीतर गरमी से
अकुलाई दुलहिन,
निर्मोही अवगुंठन को ही गया उठाना भूल
देखा सुबह बिछौना उसपर बिछे हुए थे फूल
नदी पियासी सूखे पोखर
और हाँफते दिन
कब आयेंगे कारे बदरा
चेहरे हुए मलिन
उमस भरी बदनाम गली को चर्चा नहीं कबूल
सूरज की नाराजी देखो, पकड़ न जाए तूल
____________________विश्वम्भर शुक्ल
औंघाये पल-छिन,
घूँघट के भीतर गरमी से
अकुलाई दुलहिन,
निर्मोही अवगुंठन को ही गया उठाना भूल
देखा सुबह बिछौना उसपर बिछे हुए थे फूल
नदी पियासी सूखे पोखर
और हाँफते दिन
कब आयेंगे कारे बदरा
चेहरे हुए मलिन
उमस भरी बदनाम गली को चर्चा नहीं कबूल
सूरज की नाराजी देखो, पकड़ न जाए तूल
____________________विश्वम्भर शुक्ल
शानदार।
ReplyDeleteसादर आभार आपका Preeti Yadav जी. नमन
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