Monday, 1 June 2015

अफ़वाह



जलता था आपसी प्रेम सद्भाव का जो दिया
उड़ती सी एक ख़बर ने उसको बुझा दिया ।


न जाने किसने ख़बर इक ऐसी है उड़ाई;
मस्ज़िद ढहाने चले हैं हिन्दू भाई।


छोटी सी एक अफ़वाह ने ढा दिया कहर
दंगों की आग में जल उठा सारा शहर।


अल्लाह के बन्दे थे या भगवान के चेले,
थे खून से रँगे हाथ,लगे लाशों के मेले।


सच्चाई की तरफ न गौर किसी ने किया
हैवानियत का जाम भर भर पिया।


मस्जिद हुई विनष्ट, मंदिर दिया ढहा;
नफरत के दरिया में सारा शहर बहा।


रोती अज़ान अब सिसकती है आरती;
चुपचाप खड़ी आँसू बहाती माँ भारती।



*** दीपशिखा सागर ***

No comments:

Post a Comment

छोड़ कर जाना नहीं प्रिय - एक गीत

  छोड़ कर जाना नहीं प्रिय साथ मेरे वास कर लो। पूर्ण होती जा रही मन कामना तनु प्यास भर लो। मैं धरा अंबर तुम्ही हो लाज मेरी ढाँप लेना। मैं रहूँ...