जलता था आपसी प्रेम सद्भाव का जो दिया
उड़ती सी एक ख़बर ने उसको बुझा दिया ।
न जाने किसने ख़बर इक ऐसी है उड़ाई;
मस्ज़िद ढहाने चले हैं हिन्दू भाई।
छोटी सी एक अफ़वाह ने ढा दिया कहर
दंगों की आग में जल उठा सारा शहर।
अल्लाह के बन्दे थे या भगवान के चेले,
थे खून से रँगे हाथ,लगे लाशों के मेले।
सच्चाई की तरफ न गौर किसी ने किया
हैवानियत का जाम भर भर पिया।
मस्जिद हुई विनष्ट, मंदिर दिया ढहा;
नफरत के दरिया में सारा शहर बहा।
रोती अज़ान अब सिसकती है आरती;
चुपचाप खड़ी आँसू बहाती माँ भारती।
*** दीपशिखा सागर ***
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