Sunday 21 December 2014

दरख़्त

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 33 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ रचना 



टूटकर जाने कहाँ खो गए पत्ते,
पर सब्र डिगा नहीं दरख़्तों का।
आज कुछ है तो कल कुछ होगा,
यही तो फितरत है मौसम की।
और कुर्सी की भी ग़ज़ब दिल्लगी,
इंतज़ार फिर किसी के आने का।
हम तो परिंदे हैं कहाँ रुकने वाले,
हमें तो शौक़ है उड़ानों का।
ओ सर्दी तू मुझसे मज़ाक़ तो न कर,
दरिया हूँ मुझे ज़रुरत नहीं बहानों की।
 
***ललित मानिकपुरी***

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