Monday 1 December 2014

आशा गान

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 30 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ रचना 



अरुषि राजति द्रुमदल पर ज्यूँ हिरण्य मञ्जूषा,
फेनिल लहरों में हो प्रतिबिंबित चमकती ऊषा,  
विजन जीवन यामिनी के तमस का था अवसान,
अरुण जलज के आगमन का हुआ सुरभित गान


शीतल तुहिन कण से समुचित धरा थी पटी हुई,
क्षितिज के आँचल से रक्ताभ रश्मियाँ डटी हुई,
एक यवनिका हटी, जीवन पट का नव अनुच्छेद
नव प्रातः का स्वागत करें, भूल विगत परिच्छेद।


एक मौन एकाकी वेदना, तन स्फोट के अनुकूल,
शांत! शांत! मन अपनी चिंताओं से न हो व्याकुल,
ऐ मन हार न जीवन दाव, न हो इतना अधीर,
जीवन निशि-अन्धकार मिटाए, होता वही वीर। 


व्युष-सुधा पान को आतुर आनंदित स्पंदित मन,
तृषित अवनी हृदय को तृप्त करती जल सिंचन,
आशाएँ तो पल्लवित होती द्रुम शाखाओं पर,
धरा सा सहनशील बन चलना है बाधाओं पर।


***सुरेश चौधरी*** 

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