Sunday, 10 August 2025

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

 

गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार,
देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार,
बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट-
मिल बैठें सब लोग अब, करना यही विचार।।
हठधर्मी कुछ देश हैं, देना उनको दंड,
बहुत ज़रूरी हो गया, तोड़ें सकल घमंंड,
अहम् भाव वे पालते, बने विश्व में रोग-
करनी होगी अब हमें, अर्जित शक्ति प्रचंड।।

दुनिया डूबी जा रही, इसे बचाए कौन,
नेताओं से पूछ लो, रह जाते सब मौन,
कई देश बैठे हुए, कायरता को ओढ़-
सीधी करनी है हमें, चलती उलटी पौन।।
एटम बम गोदाम में, धमकी देते रोज़,
दोष और को दे रहे, करें न खुद की खोज,
क्यों विनाश पर है तुला, दुनिया का नेतृत्व-
दिन-दिन घटता जा रहा, सकल विश्व का ओज।।

Sunday, 3 August 2025

कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार - एक गीत

 

छाया तम अम्बर के ऊपर, बरस रहा प्रचंड जलधार।
कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार॥
🌸
गिरे गगन से बिजली पग-पग, कहीं फट रहे काले मेघ।
हरे-भरे गिर वृक्ष अचानक, रहे हृदय धरती का वेध॥
बाँधों की टूटी दीवारें, जलप्रलय करता हुंकार।
हहर-हहर नदियाँ नद-नाले, विकट कर रहे हैं संहार॥
कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार...
🌸
काट-काट पर्वत-वृक्षों को, किया प्रकृति से ख़ुद को दूर।
मचा रही विध्वंस नदी अब, अब तो हुई प्रकृति भी क्रूर॥
सैलाबों ने निगली बस्ती, मचा चतुर्दिक् हाहाकार।
आया खण्ड-प्रलय पृथ्वी पर, दिल दहलाने अबकी बार॥
कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार...
🌸
डूब गये घर-आँगन बस्ती, डूबे सभी खेत-खलिहान।
जीवनदायिनी सरि हर रही, आज बाढ़ से सबके प्रान॥
शस्य श्यामला रुदन कर रही, खो कर वैभव का संसार।
कहाँ गये सावन के झूले, कहाँ हुई गुम मृदु बौछार॥
कहीं धसकते शैल-शिखर हैं, कहीं डूबते कूल-कछार...
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*** कुन्तल श्रीवास्तव

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

  गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...