Sunday 20 October 2024

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

 

नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।
परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए।

शुभ्र तारिका झिलमिल गाये,
प्रीति भरी ज्यों माँ की लोरी ।
पलकों में छिप निंदिया रानी,
सुनती-गुनती लगे विभोरी।

अंजन वारे गगन निहारे, श्वेत अभ्र ज्यों इत-उत धाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

उन्मीलित कोरों से प्रतिपल,
चौथ चाँदनी छलके आँगन।
तमस भूल कर झटपट नभ पर,
नर्तन करती निशा सुहागन।

हुई निनादित नवरस कविता, प्रतिपल जो उन्माद जगाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

"लता" प्रेम की गूँथे लड़ियाँ,
खो कर मद को हँस-हँस मिलना।
सुख-दुख में दृढ़ता समता से,
सुप्त न हो बचपन का खिलना।

कलह आपसी कुटिल कामना, मत करिए जो चैन गँवाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

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