Sunday 20 October 2024

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

 

नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।
परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए।

शुभ्र तारिका झिलमिल गाये,
प्रीति भरी ज्यों माँ की लोरी ।
पलकों में छिप निंदिया रानी,
सुनती-गुनती लगे विभोरी।

अंजन वारे गगन निहारे, श्वेत अभ्र ज्यों इत-उत धाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

उन्मीलित कोरों से प्रतिपल,
चौथ चाँदनी छलके आँगन।
तमस भूल कर झटपट नभ पर,
नर्तन करती निशा सुहागन।

हुई निनादित नवरस कविता, प्रतिपल जो उन्माद जगाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

"लता" प्रेम की गूँथे लड़ियाँ,
खो कर मद को हँस-हँस मिलना।
सुख-दुख में दृढ़ता समता से,
सुप्त न हो बचपन का खिलना।

कलह आपसी कुटिल कामना, मत करिए जो चैन गँवाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 13 October 2024

रावण वध - चौपाई छंद

 

रावण ने जब कहा न माना।
रघुवर धनुष बाण संधाना।।
नयन विशाल अग्नि की ज्वाला।
हुए प्रकंपित काल कराला।।

स्वयं काल जनु धरे शरीरा।
आए लंक राम रण धीरा।।
जटा जूट भुज पुष्ट अजाना।
देखि रूप रावण भय माना।।

प्रभु कोदंड कीन्ह टंकारा।
शत्रु सैन्य में हाहाकारा।।
रामचंद्र प्रभु छोड़ें तीरा।
बेधे एक अनेक शरीरा।।

सरिता - रक्त बही रण ऐसे।
नग से कीच बहे जानु जैसे।।
देखा राम कीस अकुलाने।
सायक प्रभू कान तक ताने।।

शर संधानि नाभि में मारा।
गिरा धरणि मुख-राम उचारा।।
डोलत मही देखि रघुवीरा।
कई खंड कर दैत्य शरीरा।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday 6 October 2024

स्वर्ग सरीखा वह आवास - एक गीत

 

बसी आज तक उस घर यादें , जहाँ मिला दादी का प्यार।
खेल-कूद कर बड़े हुए थे, सुविधाओं की क्या दरकार।।

बहन बुआ के बच्चे आते, खेले सब मिलकर स्वच्छन्द।
दादा-दादी माँ-बापू के, किस्से सुन आता आनन्द।।
कभी पड़ोसी तक से हमको, मिलती प्यार भरी फटकार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

जहाँ सभी सदस्य आपस में, सुबह शाम करते हो द्वन्द।
लगे काटने घर की चौखट, लगता पड़ा गले में फन्द।।
बिना प्रेम के खाली आँगन, नहीं कहाता शुभ घर द्वार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

खुशियों से घर आँगन महके, स्वर्ग सरीखा वह आवास।
बजे बाँसुरी जहाँ चैन की, उस घर ही होता उल्लास।।
अपनापन का भान जहाँ हो, मिले तसल्ली उस घर बार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

  नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए। परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए। शुभ्र तारिका झिलमिल गाये, प्रीति भरी...