Sunday 21 July 2024

नव सुबह खिलखिलाती खड़ी - एक गीत

 

क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।
ढो रहे माथ पे व्यर्थ में हार को सामने शुचि विजय मुस्कुराती खड़ी।

सप्त रंगी चुनर धार कर हर किरण ले खड़ी हाथ में शुभ विजय थाल को।
हार तो है विजय कर रही जो अभय गर्व से अब उठा कर चलो भाल को।
क्रोण प्राची खिला तोड़ तम का किला गा रही है उषा नव प्रभाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

भानु से तप चलो वायु से बह चलो बादलों से बरसते रहो तुम सदा।
सिन्धु गाम्भीर्य ले भूमि से धैर्य ले साधना कर चलो सर्व मंगल प्रदा।
नष्ट होगा सकल तम चलो तोड़ भ्रम लक्ष्य की राह है जगमगाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

शस्त्र ले कर्म का मार्ग ले धर्म का लक्ष्य को बेधते वीर आगे बढ़ो।
श्री विजय का वरण अब करेंगे चरण साहसी विघ्न को चीर आगे बढ़ो।
तोड़ नैराश्य को जोड़ दे लास्य को देख अब जिन्दगी महमहाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

*** सीमा गुप्ता "असीम"

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