Sunday, 7 July 2024

'चाह अघोरी' - एक गीत

 

मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।
द्वापर-त्रेता की नौका चढ़, फँस मँझधार गये।।

प्रश्नपत्र है एक प्रश्न का, हल सबको करना।
लिखा हुआ है इसमें कैसे, भवसागर तरना।
उत्तर देना बहुत जरूरी, कह सरकार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।1

मिथक बचाने लगे देश की, उखड़ी श्वासों को।
भूल गए हम सच कलाम के, सजग प्रयासों को।
उस कबीर की साखी का हम, मोल बिसार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।2

अर्थ काम की चाह अघोरी, तन मन हैं जकड़े।
मोक्ष धर्म के भ्रामक पथ ही, रहे सदा पकड़े।
पिला-पिला तृष्णा के प्याले, शातिर पार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।3

*** भीमराव 'जीवन' बैतूल

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