नर-नारी का युग्म है, ईश्वर का प्रतिरूप।
इनसे ही मिलकर बना, जग में प्रेम अनूप।।1।।
कुसुमाकर ने जब लिखे, प्रीति भरे संवाद।
नर-नारी ने कर लिये, नैनों से अनुवाद।।2।।
नर-नारी पर काम का, डाले रंग अनंग।
उसी रंग में खिल उठा, टेसू आज मलंग।।3।।
महुए ने मधुरस भरा, बाँटा जब उन्माद।
नर-नारी करते ग्रहण, तब से प्रेम प्रसाद।।4।।
महकी जब से मंजरी, हुई नशीली वात।
नर-नारी में प्रीति के, पले मृदुल जज्बात।।5।।
नर-नारी से कर लिये, ऋतुपति ने अनुबंध।
फूलों में भर प्रीति की, खुश्बू वाली गंध।।6।।
देती है जब-जब प्रकृति, मानवता को दंश।
तब-तब यहाँ सहेजते, नर-नारी निज वंश।।7।।
*** भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल ***
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