Sunday, 25 February 2018

हमारे लिए



हाथ जोड़े हुए, झुर्रियाँ कह रहीं,
कुछ समय तो निकालो हमारे लिए।


बात ख़ुद से करूँ, तुम कहो कब तलक,
लाख सपने मगर, कब झपकती पलक,
सूखती ही गयी, आँख की हर नदी,
प्यास मरुथल बनी, सीप-स्वाती ललक।


पीर पिघली नहीं बर्फ सी जम गयी,
शब्द ऊष्मा उचारो, हमारे लिए।


भीति बहरी हुई सुन मेरी वेदना,
कह नहीं कुछ सकी डूबती चेतना,
ईंट-गारा लहू हड्डियों का भवन,
डूबती साँस है रक्त रंजित तना।


बाण की सेज पर भीष्म सी कामना,
कहकहा ही लगा लो हमारे लिए।


***** गोप कुमार मिश्र

Sunday, 18 February 2018

मिलन के पथ

 
मिलन के पथ सब कटीले हो गए हैं।
प्रेम के पग अब नुकीले हो गए हैं।


क्यों जले अंतस खड़ी प्रतिवेदना,
क्यों समर्पण को छले संवेदना,
स्वार्थी क्यों हो गए अनुरोध मेरे,
क्यों घृणित तन के कबीले हो गए हैं,
मिलन के पथ सब कटीले हो गए हैं।


प्रणय की बदली सभी हैं वर्तनी,
वासना की बढ़ गयी गति मंथनी,
हो गये वीभत्स प्रेमाभिव्यक्ति के पथ,
कपट के कद..तन..गठीले हो गए हैं,
मिलन के पथ सब कटीले हो गए हैं।


खो गई मोहन की मुरली बाबरी,
राधिका भी स्वार्थ वश है साँवरी,
प्रेम के सब राग मीरा ने भुलाए,
और छल सजकर छबीले हो गए हैं,
मिलन के पथ सब कटीले हो गए हैं।
 

***** अनुपम आलोक

Tuesday, 13 February 2018

आया मनभावन बसंत

 


नव पल्लव के मृदु झूले पर,
देखो बैठी इतराकर,
प्रकृति सुंदरी झूम रही है,
आहट साजन का पाकर,
पुष्पों का परिधान सुशोभित, सौरभ फैला दिग्दिगंत,
इंद्रधनुष बोता धरती पर, आया मनभावन बसंत


कोयल मंगल गान सुनाती,
मधुरिम स्वर-लहरी फूटे,
मधु पराग चहुँदिश सुमनों पर,
नत हो मधुकर-दल लूटे,
दौड़ पड़े मादक सिहरन सी, छू लेता जब विहँस कंत,
पोर पोर उन्मादित करता, छाया मनभावन बसंत


आँचल में मोहक धरती के,
कितने रंग उभर आए,
नदिया बहती भर उमंग से,
पवन श्वास को महकाए,
मुस्काती है प्रकृति सुंदरी, बिखराती है सुख अनंत,
स्वर्ग धरा पर ज्यों उतार कर, लाया मनभावन बसंत


***** प्रताप नारायण

Sunday, 4 February 2018

चार दोहे - आज-कल


आभासी हैं आज कल, रोज नये अनुबंध।
भटकाये फिर मन मृगा, ये कस्तूरी गंध।।


आपा धापी शीर्ष पर, शील धैर्य अवसान।
करुण पुकारें आज कल, कौन सुने भगवान।।


एक अचम्भा आज कल, रोज नये अवतार।
तृष्णा में डूबे हुए, बनते तारण हार।।


गुरुकुल मुँह बाये खड़े, गुरुगण्डे बेकार।
खीसे में है आज कल, अतुल ज्ञान भंडार।।


आर. सी. शर्मा "गोपाल"

माता का उद्घोष - एक गीत

  आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...