पावन प्रेम प्रतीति है, सौख्य शान्ति आगार।
जो डूबा सो पार है, पार हुआ भव पार।।
श्रद्धा, संयम, त्याग को, सिखलाती है प्रीत।
प्रेमी गाते हैं जिसे, वह है गीतातीत।।
प्रेम न चाहे योग्यता, रंग, रूप, धन, रीत।
"चंचल" इसमें हारकर, मिले परस्पर जीत।।
नाम रटे रसना सदा, प्रिय छवि उर उत्कीर्ण।
पलको अब अविरल बहो, करो न मन संकीर्ण।।
तुम्हीं कामना भोग हो, तुम्हीं साध्य आराध्य।
हो न कभी अनुराग कम, पूजूँ तुम्हें अबाध्य।।
***** चंचलेश शाक्य, एटा (उ.प्र.)
प्रेमी गाते हैं जिसे, वह है गीतातीत।।
प्रेम न चाहे योग्यता, रंग, रूप, धन, रीत।
"चंचल" इसमें हारकर, मिले परस्पर जीत।।
नाम रटे रसना सदा, प्रिय छवि उर उत्कीर्ण।
पलको अब अविरल बहो, करो न मन संकीर्ण।।
तुम्हीं कामना भोग हो, तुम्हीं साध्य आराध्य।
हो न कभी अनुराग कम, पूजूँ तुम्हें अबाध्य।।
***** चंचलेश शाक्य, एटा (उ.प्र.)
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