Sunday, 24 December 2017

राह/मार्ग समानार्थी दोहे


जिसने साहस, धैर्य से, किया लक्ष्य संधान।
पथ प्रशस्त उसका हुआ, मिली उसे पहचान।।1


कामयाब वह ही हुआ, जिसके दिल में चाह।
मंजिल तक लेकर गई, कहो किसे कब राह।।2


पथ का संबल प्रेम यदि, रहे पथिक के पास।
मुश्किल झंझावात से, होता नहीं उदास।।3


मार्ग वही होता उचित, जो सिखलाए प्रीति।
साथ अकिंचन के रहे, दूर करे उर भीति।।4
 


देखो चलता जा रहा, कब से एक गरीब।
मंजिल छोड़ो राह के, पहुँचा नहीं करीब।।5


डाॅ. बिपिन पाण्डेय


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