अग्नि परीक्षा की घड़ी, आग मिला मजमून।
ताप-ताप कर लिख दिया, ऐसा चढ़ा ज़ुनून।।1।।
आग उगलता आदमी, बना आज शैतान।
खुद ही खुद को मानता, भ्रमवश ही भगवान।।2।।
जब-जब लग जाती जहाँ, जवां दिलों में आग।
तब यह शुभ संकेत ही, कहलाता अनुराग।।3।।
सीने में जब आग हो, बढ़ें निरंतर स्वार्थ।
तब केशव कहते यही, धनुष उठाओ पार्थ।।4।।
तप-तपकर ही आग में, सोना होता शुद्ध।
तप करके इंसान भी, बन जाता है बुद्ध।।5।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
खुद ही खुद को मानता, भ्रमवश ही भगवान।।2।।
जब-जब लग जाती जहाँ, जवां दिलों में आग।
तब यह शुभ संकेत ही, कहलाता अनुराग।।3।।
सीने में जब आग हो, बढ़ें निरंतर स्वार्थ।
तब केशव कहते यही, धनुष उठाओ पार्थ।।4।।
तप-तपकर ही आग में, सोना होता शुद्ध।
तप करके इंसान भी, बन जाता है बुद्ध।।5।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
No comments:
Post a Comment