Sunday, 17 December 2017

कुछ दोहे - मनभावन


अग्नि परीक्षा की घड़ी, आग मिला मजमून।
ताप-ताप कर लिख दिया, ऐसा चढ़ा ज़ुनून।।1।।


आग उगलता आदमी, बना आज शैतान।
खुद ही खुद को मानता, भ्रमवश ही भगवान।।2।।


जब-जब लग जाती जहाँ, जवां दिलों में आग।
तब यह शुभ संकेत ही, कहलाता अनुराग।।3।।


सीने में जब आग हो, बढ़ें निरंतर स्वार्थ।
तब केशव कहते यही, धनुष उठाओ पार्थ।।4।।


तप-तपकर ही आग में, सोना होता शुद्ध।
तप करके इंसान भी, बन जाता है बुद्ध।।5।।


**हरिओम श्रीवास्तव**

No comments:

Post a Comment

आगत का है स्वागत करना - एक गीत

आगत का है स्वागत करना, संस्कृति का आधार लिए। मंत्र सिद्ध अनुशासित जीवन, नेकी सद आचार लिए। घटती-बढ़ती नित्य पिपासा, पथ की बाधा बने नह...