Sunday 16 April 2017

"ग्रीष्म ऋतु" पर हाइकु


 
पिघला सूर्य,
गरम सुनहरी;
धूप की नदी।


बरसी धूप,
नदी पोखर कूप;
भाप स्वरूप।


जंगल काटे,
चिमनियाँ उगायीं;
छलनी धरा।


दही अचार,
गर्मी का उपहार;
नानी का प्यार।


बच्चे हैं भोले,
रंग बिरंगे गोले;
अमृत घोले।


चुस्की के ठेले,
आँगन बच्चे खेले;
गर्मी के मेले।


***** निशा

2 comments:

  1. waah, Behad khubsurat Haiku. dhup ki vikaralata ke sath mauz bhee. dahee-achar, chuski bhee. bachapan yadd aa gaya chuski se. shandar lekhani

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय राजकुमार धर द्विवेदी जी।

      Delete

छंद सार (मुक्तक)

  अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...