Monday 10 April 2017

एक कविता - शून्य


शून्य से शून्य तक
प्रारम्भ से अंत तक
चला कटीले मार्ग पर
सोया फूलों की सेज पर भी


बालुका राशि पर लिखी ज़िन्दगी 

और फिर इसे धोती लहरें
जीवन के लम्बे अंतराल का
समय के इस कालाघात का,
अनुभव कराती
सागर की गहरी जल राशि,
ऊपर से शांत अन्दर से उद्वेलित


विष भी इसी में
अमृत भी इसी में

यत्न सहस्त्रों किये
क्या खोया क्या मिला
लंबी डगर की यात्रा टेढ़ी-मेढ़ी
निर्दिष्ट पथ से बिखरती
आशाओं के शब्द से सँवारती 

विचित्र जीवन-यात्रा
अनमोल क्षणों को आँचल में सहेजती
दुःख को कुरेदती


यही तो है सत्य
सत्य जो पूरा भी है
अधूरा भी है
जीवन यात्रा के सन्दर्भ
उपलब्धियों का आकलन
शून्य से प्रारंभ यात्रा
शून्य पर समाप्त।


*** सुरेश चौधरी "इंदु"

No comments:

Post a Comment

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...