Sunday, 14 August 2016

आज़ादी पर दोहे


फीका फीका सा लगे, आज़ादी का जश्न ।
जब तक जीवित देश में, जाति धर्म के प्रश्न ।।1।।
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बढ़ता जाता नित्य प्रति, बैठ देश के अंक।
बेबस से सब हैं खड़े, डरा रहा आतंक।।2।।
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चहुँ दिशि फैला दिख रहा, भ्रष्टाचारी जाल।
गति विकास की मंद है, लेती नहीं उछाल ।।3।।
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अड़सठ सालों बाद भी, जनता दिखती त्रस्त।
चुने गए प्रतिनिधि सभी, हैं अपने में मस्त ।।4।।
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बेमानी सी लग रही, आज़ादी की बात।
दलित वर्ग है खा रहा, नित प्रति घूसे लात।।5।।
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बस जनता के नाम पर, बने नीतियाँ रोज।
नीति नियंता खा रहे, नित होटल में भोज।।6।।
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पढ़े लिखे हैं लोग जो, घूम रहे बेकार ।
साधन सीमित देश में, कैसे हो उपचार ।।7।।


***** डाॅ. बिपिन पाण्डेय

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