Saturday 21 May 2016

मौन - एक कविता



शब्द करते शोर जब भी, कर्ण पर व्यभिचार,
शब्द होते मौन जब भी, भावना का ज्वार
। 


साँस चलना बंद हो जब, मौन हो आवाज,
ख़त्म होता वक़्त तो फिर, शब्द जाते हार।


आँख से हो बात जब भी, चुप्पी साधे शब्द,
गुप्त होती बात जब भी, तीसरा लाचार।


आपकी आवाज़ सुनकर, ताव खाते लोग,
शब्द होते शोर में ही, अर्थ से बेकार।


शब्द पकड़े सीखते हैं, छात्र देखो अर्थ,
शोर में ही खो रहे हैं, शब्द का आधार।


शोर गुल जब हो अधिक तो, शब्द होते लोप,
ध्यान से जो सुन रहे थे, वे सभी लाचार।


न साधे योग होता, मौन में आनंद,
साधना हो मौन रहकर, मौन में ही सार। 


*****लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

3 comments:

  1. श्रेष्ठ दोहो से सम्मानित करने के लिए हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  2. श्रेष्ठ दोहो से सम्मानित करने के लिए हार्दिक आभार

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी।

      Delete

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...