Sunday, 13 September 2015
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक
गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...

-
पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
-
जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
बधाई
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय Suresh Chaodhary जी.
Deleteसादर नमन
आदरणीय सपन जी ,बहुत -बहुत शुक्रिया ` सहज साहित्य' में मेरी रचना प्रकाशित करने के लिए ...
ReplyDeleteसादर स्वागत है आपका आदरणीया Rama जी.
Deleteसादर नमन