कोई माने या ना माने
खग की भाषा खग ही जाने
पी से पी के नैन मिले जब
लगते दोनों आँख चुराने
दो पड़ोसन जब बतियाती
लगती इक-दूजे को जलाने
नेता से जब नेता मिलता
लगता खुद को तोप बताने
श्वान, श्वान को जब भी देखे
लगता अपनी पूँछ हिलाने
एक कवि जब कवि से मिलता
लगता अपना काव्य सुनाने
ऐसा जब उन्वान मिले तब
'सागर' लगता कलम चलाने
कोई माने या ना माने ...
खग की भाषा खग ही जाने |
विश्वजीत शर्मा 'सागर'
:) वाह आज के प्रतिस्पर्धा युग की सबसे कटु देन ,सादर वन्दे आदरणीय सर जी ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीया सुनीता शर्मा जी.
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