Sunday 24 May 2015

खग जाने खग ही की भाषा

 


कोई माने या ना माने
खग की भाषा खग ही जाने


पी से पी के नैन मिले जब
लगते दोनों आँख चुराने 


दो पड़ोसन जब बतियाती
लगती इक-दूजे को जलाने 


नेता से जब नेता मिलता
लगता खुद को तोप बताने


श्वान, श्वान को जब भी देखे
लगता अपनी पूँछ हिलाने 


एक कवि जब कवि से मिलता
लगता अपना काव्य सुनाने


ऐसा जब उन्वान मिले तब
'सागर' लगता कलम चलाने 


कोई माने या ना माने ...
खग की भाषा खग ही जाने |


विश्वजीत शर्मा 'सागर'

2 comments:

  1. :) वाह आज के प्रतिस्पर्धा युग की सबसे कटु देन ,सादर वन्दे आदरणीय सर जी ।

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    1. सादर आभार आपका आदरणीया सुनीता शर्मा जी.

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