Sunday 10 August 2014

एक मुक्तछंद कविता - अतुल्य भारत

 सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 14 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ रचना


खिली है धूप मन में
जब खिली है मेरे देश की क्यारियाँ
क्यों न करूँ नमन नभ को
दे दिया वर
हो गयी रत्नगर्भा माँ धरा
ले बूँद वारिद से
रंग गयी धानी चुनरियाँ मेरे देश की
अब झूम रही हैं फसलें 
थिरक रहे हैं क़दम मेरे देश के नर-नारियों के
देखकर कहीं खिला है लाल कमल
कहीं भरी है धान की मटमैली बालियाँ 
श्वेत रंग में सजी है कहीं मेघ की धारियाँ 
भरे पड़े हैं ईश कृपा अन्न के कुठार
तो कहीं भरी है चीनी की बोरियाँ,
खड़ा सीमा पर सीना ताने मेरा सैनिक भाई
जो रच रहा है वीरता की अतुलनीय कहानियाँ
'सत्यम शिवम् सुन्दरम' का हो रहा उद्घोष
बज रहे है शंख और घंटियाँ
यही मंदिरों की शान है
फूल जाता है गर्व से सीना मेरा
होती जब मस्जिदों में अजान है
गुरु की शरण लेता हूँ नित
सिख मेरी पहचान है
सुनके चर्च की बेल
और बाइबिल को पढ़कर होता हमें अभिमान है
हर वासी है ख़ुश और है चंगा
हैं हाथ में सबके आज़ादी का एक तिरंगा
तभी तो विस्मित होकर जग जलता है
पर मेरा भारत तो ऐसे ही बनता है
ऐसा ही सजा-सँवरा मेरा प्यारा
जग से न्यारा
"अतुल्य भारत"

**
रामकिशोर उपाध्याय

4 comments:

  1. देशप्रेम के सभी भाव संजोती सुन्दर अभिव्यक्ति...सादर बधाई !!

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    1. सादर आभार आपका आदरणीया ऋता शेखर मधु जी... सादर नमन

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  2. बेहद खूबसूरत ढंग से लिखी इस देश प्रेम की रचना को सलाम

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    1. डॉ. शशि सिंह जी, आपका बहुत-बहुत आभार. सादर नमन

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