Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना - एक गीत
हो कृपा की वृष्टि जग पर वामना । मंगलमयी सृष्टि हो मन-कामना॥ नाव मेरी प्रभु फँसी मँझधार है, हाथ में टूटी हुई पतवार है, दूर होता ...
-
पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
-
जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
सुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी ,शुक्रिया सांझा करने के लिए Vishwajeet Sapan जी
ReplyDeleteआभार आपका मंजुल जी.
ReplyDeleteसादर नमन
बेहद सारगर्भित, पठनीय ब्लॉग | हार्दिक बधाई सपन सर
ReplyDeleteबेहद सारगर्भित, पठनीय ब्लॉग | हार्दिक बधाई सपन सर
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete