Subscribe to:
Post Comments (Atom)
छंद सार (मुक्तक)
अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...
-
अंधकार ने ली विदा, ऊषा का आगाज़। धानी चूनर ओढ़ ली, धरती ने फिर आज।।1।। अम्बर से ऊषा किरण, चली धरा की ओर। दिनकर की देदीप्यता, उतरी ...
-
मानसरोवर में सबको ही, सुंदर दृश्य लुभाता। हंस हंसिनी विचरण करते, धवल रंग से नाता।। सरस्वती के वाहन होकर, हंसा मोती चुगते। शांत भाव के...
सुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी ,शुक्रिया सांझा करने के लिए Vishwajeet Sapan जी
ReplyDeleteआभार आपका मंजुल जी.
ReplyDeleteसादर नमन
बेहद सारगर्भित, पठनीय ब्लॉग | हार्दिक बधाई सपन सर
ReplyDeleteबेहद सारगर्भित, पठनीय ब्लॉग | हार्दिक बधाई सपन सर
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete