Sunday, 11 August 2013
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"फ़ायदा"
फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...

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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
Wah....ye pehlu ka humein pata na tha...Dhanyavaad
ReplyDeleteदिब्येंदु दत्ता,
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र. यह भी अभी अपूर्ण है. छंद के बारे में जानकारियाँ अगाध हैं और किसी एक व्यक्ति के लिए सब-कुछ जानना संभव नहीं है.
सादर
सपन