Saturday, 17 November 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक
गोला औ बारूद के, भरे पड़े भंडार, देखो समझो साथियो, यही मुख्य व्यापार, बच पाए दुनिया अगर, इनको कर दें नष्ट- मिल बैठें सब लोग अब, करना...

-
पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
-
जब उजड़ा फूलों का मेला। ओ पलाश! तू खिला अकेला।। शीतल मंद समीर चली तो , जल-थल क्या नभ भी बौराये , शाख़ों के श्रृंगों पर चंचल , कुसुम-...
Respected sir ,had been admiring your verse since joining you in the group but after hearing your profound voice will just remark ...a born genius ,congrats .
ReplyDeleteSunita Sharma ji,
DeleteThank you very much for your appreciation. Such words keep me going.
Thanks again.