Sunday 29 September 2024

नीलिमा के पटल पर - गीत

 

नीलिमा के इस पटल पर, नव सबेरा आज कर तुम,
देख लो अदृष्ट अपना, यह सुनहली प्रात तेरी।

खुल गयी है यवनिका अब, यश प्रदा नव-जागरण की।
कर्म के पट पर लिखी है, भूमिका तव आचरण की।
जाग नव युग के सृजन पर, अब हुई है बात तेरी।
देख लोअदृष्ट अपना .....

यामिनी की पाठशाला, अब हुई है बन्द पगले।
नव सवेरा है उसी का, जो स्वयं ही आज सँभले।
इस सृजन पर हो न पाए, ओ मुसाफ़िर मात तेरी।
देख लो अदृष्ट अपना .....

अब तलक तू कर्म-पथ पर,स्वप्न ही बुनता रहा है।
कल्पना के मृदु सफर में, फूल ही चुनता रहा है।
चाहती माँ भारती अब, कर्म की सौगात तेरी।
देख लो अदृष्ट अपना.....

*** सीमा गुप्ता 'असीम'

Sunday 22 September 2024

"ये दुनिया खेल तमाशा" - एक गीत



ये दुनिया खेल तमाशा बंधू , खेल नहीं पर जीवन प्यारे।
माया नटिनी नाच नचाती मुग्ध जीव तन मन धन वारे।

साधो जीवन गीत सुहाना कहाँ उदासी कहाँ बहाना।
अर्चन पूजन मंदिर जाना हर हर गंगे खूब नहाना।
ओढ़ चुनरिया निर्मल हो लो सजग चेतना धी धन तारे।
ये दुनिया खेल तमाशा बंधू , खेल नहीं पर जीवन प्यारे।

मेला जग का सुभग लुभाता झिलमिल तारे चाँद सुहाता।
क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच तत्व से प्राण पुहाता।
चीवर के बिखरे तारों की ईश करे है सीवन सारे।
ये दुनिया खेल तमाशा बंधू , खेल नहीं पर जीवन प्यारे।

शुभ दिन सभी ईश के उज्ज्वल मंगल घड़ी कर्म से फलती।
धर्म सिखाता जीवन जीना करुणा में मानवता पलती।
अशुभ नहीं कुछ शुद्ध आचरण से बनते हैं सब छन न्यारे।
ये दुनिया खेल तमाशा बंधू , खेल नहीं पर जीवन प्यारे।

*** सुधा अहलुवालिया 

Sunday 15 September 2024

मुक्तक - करुणा सागर

 

हिय विशाल हो रत्नाकर-सा।
प्यार-भरा करुणा सागर-सा।
भरा समन्दर हो आँखों में-
खारे जलनिधि के आगर सा॥1॥
🌸
गिरि शिखरों से नदियाँ आतीं।
अपनी-अपनी व्यथा सुनातीं।
अर्णव उनके दुख हर लेता-
हर्षित हिय सुरपुर सरि जातीं॥2॥
🌸
जल का पारावार उदधि है।
जीवन का आधार जलधि है।
विष अमरित चौदह रत्नों का-
अद्भुत दाता यह नीरधि है॥3॥
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

(शब्दार्थ : जलनिधि- समुद्र, सागर, खारे पानी की वह विशाल राशि जो चारों ओर से पृथ्वी के स्थल भाग से घिरी हुई हो। आगर- घर/ श्रेष्ठ/उत्तम, अर्णव - लहर उठाता हुआ महासागर/वायु/सूर्य/लहर/धारा, पारावार- आरपार/सीमा, उदधि- जलकी अधिक मात्रा/समुद्र, जलधि- पानी का खजाना/महासागर, नीरधि- जल धारण करने वाला/समुद्र।)

Sunday 8 September 2024

गीत - जल ही जीवन का आधार

 

वर्षा ऋतु का स्वागत करते, जल ही जीवन का आधार।
अति वर्षा से हुई तबाही, रूहें काँप रही इस बार।।

फँसलें चौपट की वर्षा ने, जल-प्लावन दिखता हर ओर।
उजड़ गई हैं कई बस्तियाँ, नहीं देख पाये कुछ भोर।।
कई जगह पर गिरा बिजलियाँ,आफत बरसाते है मेघ।
जहाँ कही बादल फट जाता, लाशों का लगता अम्बार।।

कहर जहाँ कुदरत का छायें, नहीं किसी का चलता जोर।
कट जाता सम्पर्क सभी से, कौन किसी की पकड़ें डोर।।
बाढ़ निगोड़ी जब भी आती, टूटे नदियों के तट बन्ध।
शहर गाँव की सड़क न दिखती, बरसे जहाँ मूसलाधार।

छेड़-छाड़ छोड़ें कुदरत से, अगर रोकना हमें विनाश।
नहीं प्रदूषण फैले तब ही, देख सके नीला आकाश।।
विकास यात्रा बाधित होती, मानव का ही इसमें दोष।
रुके तबाही नदी बाढ़ से, नदियों को जोड़ें सरकार।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 1 September 2024

जग का गीत

 

कण-कण में विलसित सुंदरता, जगती रूप निखारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।

निशा निशाकर, दिवा दिवाकर, हीरक जटित रश्मियाँ।
मोती तुहिन पुष्प पल्लव पर, यौवन खिलती कलियाँ।
खग-कलरव ज्यों बटुक वृंद ने, वैदिक मंत्र उचारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।

वृद्धि प्राप्त वन सुषमा रंजित, पर्ण विटप लतिकायें।
सुभग सरित-तट सिंधु महानद, आर्द्रिल उपत्यकाएं।
अद्भुत मिलन सितासित बहती, पृथक्-पृथक् दो धारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।

बना अतुल सौंदर्य जगत का, कण-कण वही समाया।
प्राणिमात्र के अमल हृदय को, निज आवास बनाया।
सबके प्रति हो आत्मभाव का, मृदु सम्बंध हमारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

  नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए। परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए। शुभ्र तारिका झिलमिल गाये, प्रीति भरी...