Sunday 25 August 2024

आओ अब बनवारी - एक गीत

 

पानी से पानी पर लिखती, सन्देशे महतारी।
पाप भार से वसुधा हारी, आओ अब बनवारी॥

कहाँ गया आक्रोश तुम्हारा, अभिमन्यु के वध का
कोस रहा शत बार तुम्हें फिर, राजा दुष्ट मगध का
खींच रहे हैं चीर दुशासन, नित ही द्रौपदियों के।
भीष्म द्रोण कृप विदुर मौन हो, दिन गिनते सदियों के

नारद व्यास गर्ग शुक शंकर, बन बैठे दरबारी।
पाप भार से वसुधा हारी, आओ अब बनवारी

दन्तवक्र हँसता अधर्म कर, पौण्ड्रक धर्म बताता।
जरासन्ध कन्या रक्षक बन, नित व्यभिचार बढ़ाता
दैत्य अघासुर और बकासुर, न्याय - नीति सिखलाते।
बन्धु कंस के मल्ल गीत मिल, लोकतन्त्र के गाते

कंस सुयोधन के सुराज पर, भीत प्रजा बलिहारी।
पाप भार से वसुधा हारी, आओ अब बनवारी

कालयवन उपदेशक श्रुति का, बाणासुर है ज्ञानी।
साधु शकुनि पर धर्मराज ने, गदा व्यर्थ है तानी
गीता और भागवत बाँचे, नर्तक और गवैय्ये।
वेद मन्त्र हो गए यज्ञ के, मादक सरस सवैय्ये

आगम निगम पुराण बिक रहे, ज्यों बिकती तरकारी।
पाप भार से वसुधा हारी, आओ अब बनवारी
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

Sunday 18 August 2024

गीत - 'महका हिंदुस्तान'

विजय गान गा थिरक रही है, अधरों पर मुस्कान।

उजियारे की चिट्ठी लेकर, आया घर आदित्य।
कुशल क्षेम सब जन गण में है, सुना रहा साहित्य।।
विहग-वृंद भी चहक रहे हैं, देख धवल दिनमान।।1
निकल पड़ी पर्वत-पीहर से, पिया मिलन को धार।
संस्कृतियाँ भी घाट-घाट पर, बैठी कर शृंगार।।
पाप-पुण्य के वेद उपासक, करते पग-पग स्नान।।2

रूप गर्विता धरा प्रगल्भा, बाँट रही शुचि धान।
केशर घाटी के परिमल से, महका हिन्दुस्तान।।
जीवन में सौहार्द देखकर, विहँसे वीर किसान।।3

*** भीमराव 'जीवन' बैतूल

Sunday 11 August 2024

एक गीत - ये जीवन है बस खेल, प्रिये !

ये जीवन है बस खेल, प्रिये !

इक दाँव हरा, इक दाँव भरा
चट पाँव धरा, पट पाँव धरा।
जब जीत-जीत पर हार मिले
तो हार-हार पर जीत खिले
ये जीवन है बस खेल, प्रिये।

मैं उठ-उठ कर हर बार गिरा
तब गिर-गिर कर भी ख़ूब फिरा
वह हार बनाता चाहों का
हर बार सहारा बाहों का
ये जीवन है बस बेल, प्रिये!

इक यहाँ चढ़ा, इक वहाँ चढ़ा
वह टकरा के हर बार बढ़ा
यह बैठ गया, वह उतर गया
हर एक मुसाफ़िर मितर नया
ये जीवन है बस रेल, प्रिये!

*** रमेश उपाध्याय 

Sunday 4 August 2024

मन के मनके दोहरे

 

संग सजीले स्वप्न से, रूप सँजोये प्रीत।
चाह यही सदियों रहे, संग तुम्हारा मीत।।
ये मँडराते पुष्प पर, मधुरस के मजमून।
सुख अनंत मिलते जहाँ, खुशियाँ होती दून।।
मन की दुविधा सब कटे, करके उनसे बात।
मावस की हो वेदना, बने उजाली रात।।
बंद लिफाफे ज्यों खुशी, बँधी रहे उम्मीद।
खुले हृदय के द्वार 'दो', करिए उसके दीद।।
जगत रीति घन साधना, जीवन है संघर्ष।
मीत मिले मन भावना, सुख-दुख बाँटे हर्ष।।
कृष्ण-सुदामा से मिले, नीर नयन असहाय।
सरल प्रेम निष्काम हो, लिखा गया अध्याय।।
राधा-मीरा की लगन, श्याम सघन संगीत।
रोम-रोम गाए ‘लता’, ऐसा हो मन मीत।।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

  नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए। परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए। शुभ्र तारिका झिलमिल गाये, प्रीति भरी...