Sunday, 28 July 2024

अशुभ नहीं कुछ होता - गीत

 

अशुभ समय की बना धारणा, डालें पाँव कुठारी।
चिंतन करके काज सँवारे, वह पल हो शुभकारी।।

अशुभ समय कह काम टालता, वही वक्त को खोता
समय रूप है स्वयं ईश का, अशुभ नहीं कुछ होता।।
सुखद क्षणों की करे प्रतीक्षा, पिछड़े वह जन भारी ।

रहे सोचते शुभ क्षण आये, उनको समय नचाता।
गया वक्त फिर नहीं लौटता, पछतावा रह जाता।।
शक्ति निहित सही समय में, दूर करे दुश्वारी।

उचित समय सबको ही मिलता, कुछ ने नहीं सँवारा।
समझ रहे मनहूस समय जो, करते वक्त गँवारा।।
भाग्य भरोसे बैठा मानव, वह खाता चोट करारी।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday, 21 July 2024

नव सुबह खिलखिलाती खड़ी - एक गीत

 

क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।
ढो रहे माथ पे व्यर्थ में हार को सामने शुचि विजय मुस्कुराती खड़ी।

सप्त रंगी चुनर धार कर हर किरण ले खड़ी हाथ में शुभ विजय थाल को।
हार तो है विजय कर रही जो अभय गर्व से अब उठा कर चलो भाल को।
क्रोण प्राची खिला तोड़ तम का किला गा रही है उषा नव प्रभाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

भानु से तप चलो वायु से बह चलो बादलों से बरसते रहो तुम सदा।
सिन्धु गाम्भीर्य ले भूमि से धैर्य ले साधना कर चलो सर्व मंगल प्रदा।
नष्ट होगा सकल तम चलो तोड़ भ्रम लक्ष्य की राह है जगमगाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

शस्त्र ले कर्म का मार्ग ले धर्म का लक्ष्य को बेधते वीर आगे बढ़ो।
श्री विजय का वरण अब करेंगे चरण साहसी विघ्न को चीर आगे बढ़ो।
तोड़ नैराश्य को जोड़ दे लास्य को देख अब जिन्दगी महमहाती खड़ी।
क्यों झुकाकर नयन चल रहे हो सजन सामने नव सुबह खिलखिलाती खड़ी।

*** सीमा गुप्ता "असीम"

Sunday, 14 July 2024

इमदाद ने'मत है - एक ग़ज़ल

 

ख़ुलूस-ए-दिल गरीबों की करे इमदाद ने'मत है
यही पूजा है हिंदू की ये मुस्लिम की इबादत है

बनाया है तुम्हें काबिल ख़ुदा ने ख़ास है मकसद
करो पूरा उसे हँसकर अगर थोड़ी लियाक़त है

जो रोतों को हँसा देता वही भगवान को भाता
दुआओं में असर होगा यही उसकी निज़ामत है

यहाँ कुछ लोग हैं ऐसे नहीं ग़ैरत ज़रा उनमें
मदद मांगे हमेशा वो भला कैसी ये फ़ितरत है

अपाहिज लोग हिम्मत से सदा जीते हैं दुनिया में
सहारा ख़ुद-ब-ख़ुद बनते ग़ज़ब ऐसी हक़ीक़त है

मदद करके जताने से सिला हासिल नहीं होता
सदा नेकी बहा देना समन्दर में लताफ़त है

सुनो 'सूरज' मुसीबत में अदू को माफ़ कर देना
बिना बोले मदद करना यही सच्ची सख़ावत है

*** सूरजपाल सिंह, कुरुक्षेत्र ।

ख़ुलूस-ए-दिल = हृदय की पवित्रता
निज़ामत = शासन संबंधी व्यवस्था या प्रबंध
लताफ़त = .पाकीज़गी, सुन्दरता
अदू = शत्रु
सख़ावत = दानशीलता

Sunday, 7 July 2024

'चाह अघोरी' - एक गीत

 

मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।
द्वापर-त्रेता की नौका चढ़, फँस मँझधार गये।।

प्रश्नपत्र है एक प्रश्न का, हल सबको करना।
लिखा हुआ है इसमें कैसे, भवसागर तरना।
उत्तर देना बहुत जरूरी, कह सरकार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।1

मिथक बचाने लगे देश की, उखड़ी श्वासों को।
भूल गए हम सच कलाम के, सजग प्रयासों को।
उस कबीर की साखी का हम, मोल बिसार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।2

अर्थ काम की चाह अघोरी, तन मन हैं जकड़े।
मोक्ष धर्म के भ्रामक पथ ही, रहे सदा पकड़े।
पिला-पिला तृष्णा के प्याले, शातिर पार गये।
मदिर मोह में किंवदन्ती के, जीवन वार गये।।3

*** भीमराव 'जीवन' बैतूल

माता का उद्घोष - एक गीत

  आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...