पुष्प या बहु कंटकों से पथ भरा हो
हों प्रकीर्णित रश्मियाँ या कोहरा हो
जो तुम्हारे द्वार तक ले जाए मुझको
बस यही वरदान दो प्रभु! मैं सदा, उस पंथ पर ही पग धरूँ
नींद में होऊँ भले या चेतना में
हर्ष में होऊँ भले या वेदना में
एक पल भूलूँ नहीं तुमको कभी मैं
बस यही हे ईश कर दो, चित्त तुमसे ही सदा अपना भरूँ
तीव्र लहरें हों भले या शांत धारा
दीखता हो दूर कितना ही किनारा
आ रही हो ज्योति तेरी जिस दिशा से
बस यही भगवान वर दो, नाव का अपनी उधर ही रुख करूँ
*** प्रताप नारायण ***
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