Sunday, 1 November 2015

प्रतीक्षारत

 
ऋतु शीत है, धरा तुहिन पोषित है, संगीत है,
मकरंद सरोरुह अर्जित है, भ्रमर गुंजित है,

मंजरी झूमे है, सुन वादन मन मदन ग्रसित है,
शाख शाख पलास पल्लवित है, बदन स्पंदित है


पास आयेंगे कंत है, गलबहियाँ अनंत है,
अरुणोदित क्षितिज दिगंत है, आया हेमंत है,
रूपसी लिए रूप चहुंदिक पिय प्रतीक्ष्यन्त है,
कलत्व-मुदित राग इस ओर से उस पर्यन्त है


***सुरेश चौधरी

1 comment:

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"फ़ायदा"

  फ़ायदा... एक शब्द जो दिख जाता है हर रिश्ते की जड़ों में हर लेन देन की बातों में और फिर एक सवाल बनकर आता है इससे मेरा क्या फ़ायदा होगा मनुष्य...