Sunday, 11 October 2015

एक चतुष्पदी

 
पाषाणों की इक कारा में, तरु का एकल साया है;
खण्डित से मन्दिर में आकर, रवि ने दीप जलाया है।
करके वीराँ इंसाँ ने तो, छोड़ दिया, फितरत उसकी;
नभ ने सरसा के मेह यहाँ, जल अभिषेक कराया है।


*** दीपशिखा

No comments:

Post a Comment

माता का उद्घोष - एक गीत

  आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...