Sunday 26 October 2014

दो रचनायें

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 25 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ दो रचनायें 


रचना - 1

रोशन कर लो दीप जो, जोड़े मन के तार।
तिमिर हटे प्राचीर सा, मिले द्वार से द्वार
।1

मन को रखो बुहार कर, सत माटी से लीप
  रंग भरे प्रभु नेह का, हिय बारो वह दीप ।2

जब तक घृत था तेल था, बाती में थी आग
  दीपक से तब तक रहा, मानव का अनुराग ।3

रोशन थे जब दीप कल, रोशन थी तब रात
  मावस का तम दूर था, कहता नवल प्रभात ।4

नेह प्रीति के दीप से, घर-घर करें प्रकाश 
हरित धरा चमचम करे, जगमग हो आकाश ।5

~ फणीन्द्र कुमार ‘भगत’




रचना -2
 
दीप तूने दिया,
सबको प्रकाश
खुद अँधेरे में रहकर,
संत भक्त सूर की तरह
।1

दीपक तेरी लौ,
सदा अग्रसर
उच्च गगन की और,
सदाशयता की तरह
।2

तम को हरता,
दीपक तूँ ,
सदा खिला रहता
चांदनी की तरह
।3

प्रकाशमान जाज्वल्य
घट भी मठ भी,
और शठ भी
समरसता की तरह
।4

पतंगे जल जाते है,
फिर भी दौड़े आते है,
ये मोहब्बत है दीप
लैला मजनूं की तरह
।5


  एक दोहा:-

बड़ा खजाना ज्ञान का,वेद पुरानकुरान
  दीप जला सदभाव का,समरस करे सुजान

~ जी. पी. पारीक

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