Sunday 20 December 2015

चित्र आधारित कुछ दोहे



दादा दादी चल बसे, छोड़ा यह संसार।
जिस घर में रौनक रही, अब एकल परिवार।।

बेच दिया था घर यही, बेटा पढ़ लिख जाय।
मुन्ना आज विदेश में, दौलत बहुत कमाय।।

घर मुझको तुम बेचकर, दो गुड़िया को ब्याह।
बापू को थे दे रहे, चाचू नेक सलाह।।

समय नहीं रहता कभी, सुनिए एक समान।
जो कल अपनी आन था, आज किसी की शान।।

बीत गया बचपन जहाँ, अब वह कितना दूर।
बदलेगा फिर से समय, जीने का दस्तूर।।

◆ गुरचरन मेहता 'रजत' ◆

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