Thursday 29 May 2014
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प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...
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अंधकार ने ली विदा, ऊषा का आगाज़। धानी चूनर ओढ़ ली, धरती ने फिर आज।।1।। अम्बर से ऊषा किरण, चली धरा की ओर। दिनकर की देदीप्यता, उतरी ...
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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
वाह ! कायल हूँ आपकी लेखनी का … यथार्थ का सजीवता के साथ चित्रण किया है ।
ReplyDelete- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
सादर आभार एवं नमन पवन सिंह राजपूत जी.
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