Saturday, 10 March 2012

एक गीत













फिर चले जाना

चले आओ आकर फिर चले जाना,
क़रीब आओ छूकर फिर चले जाना ।

है मौसम आर्ज़ू का ये तो मत भूलो,
तमन्ना है जिधर फिर चले जाना ।

ये कैसी आग है जो दिल में लगती है,
शोला-ए-दिल बुझाकर फिर चले जाना।

यक़ीं न होगा उनको तुम न आओगे,
ज़रा सा देख इधर फिर चले जाना ।

है कितना सब्र मुझको कैसे बतालाऊँ ?
चुभो के दिल में नश्तर फिर चले जाना।

रहेगा राज़ सदा ही सपनके सीने में,
प्यार तुमसे है कहकर फिर चले जाना ।

विश्वजीत 'सपन'

वर्तमान विश्व पर प्रासंगिक मुक्तक

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