मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।
पुष्प मन से गंध चुन मन सींच दे वह इत्र होता है।
जब किसी के आचरण में निज प्रभा घुलने लगे मय में।
शुद्ध निश्छल भाव से मन में पिघल कोई बुला जाए।
है सखा विपदा पड़े तो उस घड़ी में पास आ जाए।
मौन रह मन की उदासी में उतर नव चित्र होता है।
बालपन में माँ सखा बन करुण रस को सींचती रहती।
मौन भाषा हो पिता की युवानी भी रीझती रहती।
दोस्त हो जाते युगल मन प्रेरणा निज नेह को सेते।
जीवनी की नाव सुख दुख की लहर के मध्य में खेते।
भावना हो प्रीति प्लावित आचरण सुपवित्र होता हैं।
पेड़ पौधे नदी पोखर झील झरने निर्मल दिशाएं।
उच्च शिखरों पर घुमड़ते खण्ड बादल मंजुल हवाएं।
पक्षियों की चहचहाहट पालतू पशु दोस्त से होते।
ये न हों तो जीवनी में हम मनस संवेदना खोते।
मेल से हैं गीत के रँग मित्र गुण सुचरित्र होता है।
मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।
*** सुधा अहलुवालिया
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