Sunday, 17 September 2023

"युग्म शब्द" - जन्म-मरण (दोहे)

 

जन्म-मरण संसार में, निस-दिन का है काम।
आज जन्म जिसने लिया, कल जाये प्रभु धाम॥1॥

जीव-जन्म बन्धन सदा, मरण क्षणिक है मुक्ति।
जन्म-मरण से मुक्ति की, मानव खोजे युक्ति॥2॥

फल वैसे मिलते उसे, जिसके जैसे कर्म।
मुक्ति मार्ग कैसे मिले, नहीं निभाये धर्म॥3॥

मानवता का धर्म ही, जिसने दिया बिसार।
स्वर्गलोक की कामना, किया न लोकाचार॥4॥

जन्म दिया जिसने तुम्हें, उसे गये थे भूल।
आज मृत्यु के द्वार पर, तुम्हें चुभेंगे शूल॥5॥

शाश्वत जीवन मृत्यु है, शाश्वत यही प्रसंग।
क्षणभंगुर जग जानते, पर न मोह हो भंग॥6॥

मोह-द्वेष का त्याग ही, जीव-मुक्ति आधार।
ईश-चरण अनुरक्ति से, जन्म-मरण उद्धार॥7॥


कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र

Monday, 11 September 2023

जन-जन के श्याम बिहारी - एक गीत




चित्त-चोर सब कहें गोपियाँ, जन-जन के श्याम बिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नटखट कान्हा कहे यशोदा, मिट्टी खाकर झुठलाते।
मुँह खुलवाती जब कान्हा से, मुँह में ब्रहमांड दिखाते।।
माखन चोर कहें सब सखियाँ, जाती उनपर बलिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नित्य दही माखन की हाँडी, सखियाँ छीके पर टाँके।
फिर कान्हा की बाँट निहारे, ओट लिए छुपकर झाँके।।
सन्त-पुरोधा जपते कहकर, केशव माधव गिरिधारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

मधुवन में आ कृष्ण-राधिका, जब आकर रास-रचाते।
ब्रह्मा शिव भी भेष बदलकर, उन्हें देख मन हर्षाते।।
जिसे त्रिलोकी नाथ कहे सब, वह चक्र सुदर्शन धारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।। 

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Monday, 4 September 2023

फलित साधना ध्यान से - एक गीत

 



शिवसंकल्प लिए अभिमंत्रित, शुद्ध हृदय आह्वान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

श्रेष्ठ सदा ही संस्कृति अपनी
भ्रमित करे मनस्वार्थ है।
प्राणदायिनी मंत्र ऋचाएँ,
पुण्य पंथ परमार्थ है।

भस्मीभूत करें कटुता को, दूर रहें व्यवधान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
चंचल माया के खेमें में
लगी होड़ दिन रात है।
जग व्यापी तृष्णा जो ठहरी,
झरते उल्कापात है।

यज्ञ भस्म से शुद्ध दिगंतर, करिए जन कल्याण से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
प्राच्य अंशु से सुखदा संचित,
योग भोग अविकार हों।
धन धान्य से भरी बखारियाँ,
स्वप्न सभी साकार हों।

पंचभूत से निर्मित काया, हित जीवन अनुदान से ।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday, 27 August 2023

कलाधर घनाक्षरी छंद

 

अंग-अंग में जड़े हुए अनेक रंग पुष्प, शृंग से बने किरीट शीश धारती।
देश-प्रांत में मनोहरी हरीतिमा विखेर, जीव-जंतु हेतु नित्य नीर-क्षीर वारती।।
मंद संदली समीर गा रही विहान गीत, सिंधु-उर्मियाॅं सदैव पाद-सी पखारती।
जन्मभूमि स्वर्ग के समान 'चंद्र' देख नित्य, मुक्त कंठ से करे नमामि मातु भारती।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday, 20 August 2023

गीत - यह तो प्रभु की माया है

 

जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।
पड़ो न इस पचड़े में मानव, मरघट ने समझाया है।।

बचपन में सुंदर लगता था, तब कहते यह जग सच्चा।
खेल-कूद में जग को झूठा, नहीं समझता था बच्चा।।
राग-द्वेष जब बढ़ा हृदय में, भरमायी तब काया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

कहीं द्वार पर सुख के बदले, घड़ी दुखों की आ जाये।
लगे भयावह मिथ्या यह जग, दुख की बदली जब छाये।।
सच्चा-झूठा भेद समझ मन, यह तो प्रभु की माया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

सच मानो तो मिथ्या जग ने, मानव मन को भरमाया।
झूठा तो चञ्चल मानव मन, गीता में ये समझाया।।
झूठ संगठित सच पर हावी, जग में रहता आया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Saturday, 12 August 2023

 

झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।
भरि भरि लोचन पीहर पाती, पढ़ती ज्यों पुरवाई।

सखी सहेली सहज सुनातीं, ढुरि-ढुरि अँगना कजरी।
कँगना नूपुर झूमें झुमका, रिमझिम बरसे बदरी।
लेकर आयी राखी खुशियाँ, वीरन सजे कलाई
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

भूल न पाऊँ बाबुल गलियाँ, मात-पिता की छाया
बचपन की अठखेली यादें, मौन हृदय ललचाया।
भरी उमंगे तन-मन जागे, कोमल ज्यों तरुणाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

उलझ-सुलझ के नैतिकता के, बुनकर नीड़ सयाने।
निभा रहे परिपाटी जग की, सहते युग के ताने।
बटछाया में "लता" सयानी, जीवन सधा बधाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday, 6 August 2023

धर्म की विस्मृत कथाएँ - एक गीत

अर्थ देता काम को शुभकामनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

व्यर्थ है श्रुति,शास्त्र के आख्यान सारे
संस्कृति ने सभ्यता के युद्ध हारे
कह रहे प्रक्षिप्त हैं सारी किताबें
अब लिखो तुम दानवों ने देव मारे

लुट गई घर में जगी संवेदनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

राम केवल कल्पना है सत्य मानो
किंतु, रावण के दहन को पाप जानो
हैं असत्य प्रमाण बिखरे पत्थरों के
मौन होकर वक्ष पर अब उदर तानो

राह में हैं रक्तरंजित भावनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

गल्प लगती आज पौराणिक कहानी
ह्रास संस्कृति पर यहाँ छलका न पानी
स्वर्ण लंका में बताओ कौन पापी?
द्वार पर याचक खड़े हैं पाप दानी

लोभ रचता लाभ की सब प्रार्थनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा

सवाई माधोपुर, राज. 

"युग्म शब्द" - जन्म-मरण (दोहे)

  जन्म-मरण संसार में, निस-दिन का है काम। आज जन्म जिसने लिया, कल जाये प्रभु धाम॥1॥ जीव-जन्म बन्धन सदा, मरण क्षणिक है मुक्ति। जन्म-मरण से मु...